राजस्थानी खानपान....
राजस्थानी खानपान। ।
छाछ-राबड़ी, कांदो-रोटी, ई धरती को खाज।
झोटा देवै नीम हवा का, तीजण कर री नाज।।
लूआ चालै भदै काकड़ी, सांगर निपजै जांटी।
कैर-फोगलो बिकै बजारां, वाह भईमरुधर री माटी
ई धती को उजलो गौरव, अर इतिहास कहाणी।
मरु का गौरव ऊंडा कूआ, बो इमरत सो पाणी।।
बेल्यां मोल दही रोटी की, छाछ राबड़डी छाकां।
सरदा सारू चिकणी-चुपड़ी, आथण कै दोपार्यां।।
गुड़, कान्दो, मूली, मिरची, घी को मिरियो सक्कर में।
छप्पन भोग कठै लागै, अणे बगां की टक्कर में।
गूंद सूंठजद खाय बूड़ला, टाबर मांगै पांती।
बिना चकायां दर ना भावै, वाह भई मरुधर री माटी ।।
ऊंडी थाली ठेठ किनारां, खीर परोसी होय।
भलै मिनख का दरसण, जाणी बेल्यां होया होय।।
सीरो अमरस बिना दांत को, भोजन है मौमस को।
स्यालै बणै सूसुआ रोटी, सागै दही सबड़को।।
जरी-पल्ला को मुख चूरमो, घी में गलगच बाटी।
दूर सबड़का सुणै दाल का, वाह भाई मरुधर री माटी ।।
फोगलै को सरस रायतो, गड़तुम्बां को आचार।
सामरथां की सोख मेटदे, निरबल को आधार।।
खींप फोग जांटी कै मन में, गूंजै मरुधर नाद।
कैर सांगरी खिंपोली की, सबजी घणी सुवाद।।
बिन पाणी रह ज्याय जीवता, कैर कैलिया जांटी।
या ही झलक मिलै लोगां में, वाह भई मरुधर री माटी ।।
अन्य महत्वपूर्ण बातें :-
अगर आपको ये वेबसाइट अच्छी, दमदार, मस्त लगे तो इसे Bookmark करे ।
ये लेख "http://dailylife360.com/" द्वारा रजिस्टर्ड है ।
कमेंट बॉक्स में अपने दिल की बात जरूर लिखे ।
यह साइट देखने के लिए धन्यवाद् , आपका यहाँ फिर इंतज़ार रहेगा ।
चेतावनी :- इस वेबसाइट से बिना अनुमती के इसकी सामग्री अन्य वेबसाइट/ब्लॊग में नहीं लगाए, वरना चोर वेबसाइट को डिलीट/हैक/क़ानूनी शिकायत कर दी जाएगी या जुर्माना लगाया जायेगा ।
छाछ-राबड़ी, कांदो-रोटी, ई धरती को खाज।
झोटा देवै नीम हवा का, तीजण कर री नाज।।
लूआ चालै भदै काकड़ी, सांगर निपजै जांटी।
कैर-फोगलो बिकै बजारां, वाह भईमरुधर री माटी
ई धती को उजलो गौरव, अर इतिहास कहाणी।
मरु का गौरव ऊंडा कूआ, बो इमरत सो पाणी।।
बेल्यां मोल दही रोटी की, छाछ राबड़डी छाकां।
सरदा सारू चिकणी-चुपड़ी, आथण कै दोपार्यां।।
गुड़, कान्दो, मूली, मिरची, घी को मिरियो सक्कर में।
छप्पन भोग कठै लागै, अणे बगां की टक्कर में।
गूंद सूंठजद खाय बूड़ला, टाबर मांगै पांती।
बिना चकायां दर ना भावै, वाह भई मरुधर री माटी ।।
ऊंडी थाली ठेठ किनारां, खीर परोसी होय।
भलै मिनख का दरसण, जाणी बेल्यां होया होय।।
सीरो अमरस बिना दांत को, भोजन है मौमस को।
स्यालै बणै सूसुआ रोटी, सागै दही सबड़को।।
जरी-पल्ला को मुख चूरमो, घी में गलगच बाटी।
दूर सबड़का सुणै दाल का, वाह भाई मरुधर री माटी ।।
फोगलै को सरस रायतो, गड़तुम्बां को आचार।
सामरथां की सोख मेटदे, निरबल को आधार।।
खींप फोग जांटी कै मन में, गूंजै मरुधर नाद।
कैर सांगरी खिंपोली की, सबजी घणी सुवाद।।
बिन पाणी रह ज्याय जीवता, कैर कैलिया जांटी।
या ही झलक मिलै लोगां में, वाह भई मरुधर री माटी ।।
अन्य महत्वपूर्ण बातें :-
बहुत ही चौकी शायरी
जवाब देंहटाएंजय जय राजस्थान