जय मच्छर बलवान उजागर, जय अगणित रोगों के सागर । नगर दूत अतुलित बलधामा, तुमको जीत न पाए रामा । गुप्त रूप घर तुम आ जाते, भीम रूप घर तुम खा जाते । मधुर मधुर खुजलाहट लाते, सबकी देह लाल कर जाते । वैद्य हकीम के तुम रखवाले, हर घर में हो रहने वाले । हो मलेरिया के तुम दाता, तुम खटमल के छोटे भ्राता । नाम तुम्हारे बाजे डंका ,तुमको नहीं काल की शंका । मंदिर मस्जिद और गुरूद्वारा, हर घर में हो परचम तुम्हारा । सभी जगह तुम आदर पाते, बिना इजाजत के घुस जाते । कोई जगह न ऐसी छोड़ी, जहां न रिश्तेदारी जोड़ी । जनता तुम्हे खूब पहचाने, नगर पालिका लोहा माने । डरकर तुमको यह वर दीना, जब तक जी चाहे सो जीना । भेदभाव तुमको नही भावें, प्रेम तुम्हारा सब कोई पावे । रूप कुरूप न तुमने जाना, छोटा बडा न तुमने माना । खावन-पढन न सोवन देते, दुख देते सब सुख हर लेते । भिन्न भिन्न जब राग सुनाते, ढोलक पेटी तक शर्माते । बाद में रोग मिले बहु पीड़ा, जगत निरन्तर मच्छर क्रीड़ा । जो मच्छर चालीसा गाये, सब दुख मिले रोग सब पाये