Hindi Dohe with Explaination - Kabir Tulsi Bihari Rahim Meera Surdas Raskhan Ke Dohe
कबीर, तुलसी दास, रहीम, बिहारी, मीरा, सूरदास, घनानंद के 3600 हिंदी दोहे सम्पूर्ण अर्थ के साथ ।
कबीर के दोहे और उनका अर्थ / भावार्थ
[{( 1 )}]
दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे ना कोय ।।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुख कहे को होय ।। 1 ।।
[{( 2 )}]
जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ ।।
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ ।। 2 ।।
[{( 3 )}]
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ।।
पल में पर्लय होएगी, बहुरि करेगा कब ।। 3 ।।
[{( 4 )}]
लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट ।।
पाछे पछतायेगा, जब प्राण जायेंगे छूट ।। 4 ।।
[{( 5 )}]
साधू भूखा भाव का, धन का भूखा नाहिं ।।
धन का भूखा जी फिरै, सो तो साधू नाहिं ।। 5 ।।
[{( 6 )}]
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर ।।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर ।। 6 ।।
[{( 7 )}]
बुरा जो देखन में चला, बुरा ना मिलया कोए ।।
जो मन देखा आपना, मुझसे बुरा ना कोए ।। 7 ।।
[{( 8 )}]
सब धरती कागज करूँ, लेखनी सब बनराय ।।
सात समुंदर की मसि करूँ, गुरुगुण लिखा न जाय ।। 8 ।।
[{( 9 )}]
कुटिल वचन सबतें बुरा, जारि करै सब छार ।।
साधु वचन जल रूप है, बरसै अमृत धार ।। 9 ।।
[{( 10 )}]
निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय ।।
बिन पानी बिन साबुन, निर्मल करे सुभाव ।। 10 ।।
[{( 11 )}]
माया मरी ना मन मारा, मर मर गए शरीर ।।
आशा तृष्णा ना मरी, कह गए दास कबीर ।। 11 ।।
[{( 12 )}]
गुरु गोविन्द दोहु खड़े, काके लांगू पाँय ।।
बलिहारी गुरु आपने, गोविन्द दियो बताये ।। 12 ।।
[{( 13 )}]
बोली तो अनमोल है, जो कोई जाने बोल ।।
हृदय तराजू तोल के, तब मुख बहार खोल ।। 13 ।।
[{( 14 )}]
कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हँसे हम रोये ।।
ऐसी करनी कर चलो, हम हँसे जग रोये ।। 14 ।।
[{( 15 )}]
धीरे धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।।
माली सीचे सों घड़ा, ऋतू आये फल होय ।। 15 ।।
[{( 16 )}]
आछे दिन पाछे गए, हरी से किया हेत ।।
अब पछताए होत क्या, चिड़िया चुग गयी खेत ।। 16 ।।
[{( 17 )}]
जैसे तिल में तेल है, ज्यों चकमक में आग ।।
तेरा साईं तुझ में है, तू जाग सके तो जाग ।। 17 ।।
[{( 18 )}]
करता रहा सो क्यों रहा, अब करी क्यों पछताए ।।
बोये पेड़ बबूल का, अमुआ कहा से पाए ।। 18 ।।
[{( 19 )}]
मीठा सबसे बोलिए, सुख उपजे चाहू ओर ।।
वशीकरण यह मंत्र है, तजिये वचन कठोर ।। 19 ।।
[{( 20 )}]
दुर्बल को न सताइये, जाकी मोटी हाय ।।
मरी खाल की सांस से, लोह भसम हो जाय ।। 20 ।।
[{( 21 )}]
गुरु बिन ज्ञान न ऊपजे, गुरु बिन मिले न मोक्ष ।।
गुरु बिन लिखे न सत्य को, गुरु बिन मिटे न दोष ।। 21 ।।
[{( 22 )}]
कबीरा गर्व ना कीजिये, ऊंचा देख आवास ।।
काल पड़ो भू लेटना, ऊपर जमसी घास ।। 22 ।।
[{( 23 )}]
चिंता ऐसी डाकिनी, काट कलेजा खाए ।।
वैद बेचारा क्या करे, कहा तक दवा लगाए ।। 23 ।।
[{( 24 )}]
जो तोको कांटा बुवै, ताहि तू बुवै फूल ।।
तो को फूल को फूल है , काँटा को तिरसूल ।। 24 ।।
[{( 25 )}]
लाली मेरे लाल की, जित देखू तित लाल ।।
लाली देखन में गयी, में भी हो गयी लाल ।। 25 ।।
[{( 26 )}]
कबीरा तेरी झोपडी, गल कटीयन के पास ।।
जैसी करनी वैसे भरनी, तू क्यों भया उदास ।। 26 ।।
[{( 27 )}]
चलती चक्की देख कर, दिया कबीरा रोये ।।
दो पाटन के बीच में, साबुत बचा ना कोए ।। 27 ।।
[{( 28 )}]
मांगन मरण सामान है, मत मांगे कोई भीख ।।
मांगन से मरना भला, यह सतगुरु की सीख ।। 28 ।।
[{( 29 )}]
कबीरा खड़ा बाज़ार में, सबकी मांगे खैर ।।
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर ।। 29 ।।
[{( 30 )}]
साईं इतना दीजिये, जा में कुटुम समाय ।।
में भी भूका ना रहू, साधू न भूखा जाय ।। 30 ।।
[{( 31 )}]
आये है तो जायेंगे, राजा रंक फकीर ।।
एक सिंहासन चड़ी चले, एक बांधे जंजीर ।। 31 ।।
[{( 32 )}]
जैसा भोजन खाइये , तैसा ही मन होय ।।
जैसा पानी पीजिये, तैसी वाणी होय ।। 32 ।।
[{( 33 )}]
पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोए ।।
ढाई अक्षर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होए ।। 33 ।।
[{( 34 )}]
जब में था तब हरी नहीं, अब हरी है में नाहि ।।
सब अँधियारा मिट गया, जब दीपक देखया माहि ।। 34 ।।
[{( 35 )}]
माला फेरत जुग भया, फिरा ना मन का फेर ।।
कर का मनका ढार दे, मन का मनका फेर ।। 35 ।।
[{( 36 )}]
कबीरा गर्व ना कीजिये, काल गहे कर केश ।।
ना जाने कित मारे है, क्या घर क्या परदेश ।। 36 ।।
[{( 37 )}]
माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रोंधे मोहे ।।
एक दिन ऐसा आयेगा, में रोंधुगी तोहे ।। 37 ।।
[{( 38 )}]
मेरा मुझ में कुछ नहीं, जो कुछ है सो तोह ।।
तेरा तुझको सौपता, क्या लागे है मोह ।। 38 ।।
[{( 39 )}]
जैसा भोजन खाइये , तैसा ही मन होय ।।
जैसा पानी पीजिये, तैसी वाणी होय ।। 39 ।।
[{( 40 )}]
ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोय ।।
औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होय ।। 40 ।।
[{( 41 )}]
तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय ।।
कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय ।। 41 ।।
[{( 42 )}]
मलिन आवत देख के, कलियन करे पुकार ।।
फूले फूले चुन लिए, काल हमारी बार ।। 42 ।।
रहीम के दोहे और उनका अर्थ / भावार्थ
[{( 43 )}]
रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।।
जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवारि ।। 43 ।।
तुलसीदास के दोहे और उनका अर्थ / भावार्थ
बिहारी के दोहे / कविता और उनका अर्थ / भावार्थ
सूरदास के दोहे / कविता और उनका अर्थ / भावार्थ
मीरा के दोहे / कविता और उनका अर्थ / भावार्थ
घनानंद के दोहे / कविता और उनका अर्थ / भावार्थ
रसखान के दोहे और उनका अर्थ / भावार्थ
[{( 44 )}]
प्रेम प्रेम सब कोउ कहत, प्रेम न जानत कोइ ।।
जो जन जानै प्रेम तो, मरै जगत क्यों रोइ ।। 44 ।।
(इस पेज का कार्य प्रगति पर है जल्द ही पूरा करेंगे, आपके साथ के लिए धन्यवाद, आभार )
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