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राजस्थान राज्य का अधिंकाष भू-भाग रेगिस्तानी होने के कारण सूखे एवं अकाल की विभीषिका से जूझता रहा है। इसके साथ ही संसाधनों की कमी एवं बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण राज्य के ग्रामीण क्षेत्र में बेरोजगारी की समस्या भी सदैव बनी रही है। फलतः निर्धनता , बेरोजगारी और विषमता आदि समस्याओं से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सदैव आघात पहुंचता है। विभिन्न योजनाओं के माध्यम से राज्य सरकार ने गॉवों को न केवल विकास की मुख्य धारा से प्रत्यक्ष रूप से जोडा है, बल्कि ग्रामीण विकास हेतु विपुल संसाधन उपलब्ध कराकर ग्रामीण अंचलों में जनसुविधाओं का विस्तार , रोजगार के अधिक अवसर एवं गरीब परिवारों के आर्थिक स्तर में सुधार लाने का उल्लेखनीय कार्य किया है। यद्यपि स्वतंत्रता प्राप्ति के तीसरे दषक से ही ग्रामीण क्षेत्र के योजनाबद्ध विकास ने नया मोड लिया और अति पिछडे तथा गरीबी से ग्रस्त परिवारों को सीधे लाभ पहुंचाने की दिषा में प्रयास किये गये , लेकिन राज्य में ग्रामीण विकास को और अधिक प्राथमिकता एवं विषेष महत्व देते हुए वर्ष 1971 में विषिष्ठ योजना संगठन की स्थापना की गई। वर्ष 1979 में पुर्नगठन के साथ-साथ इसका कार्य क्षेत्र बढ़ाकर इसे " विषिष्ठ योजनाएं एवं एकीकृत ग्रामीण विकास विभाग " का नाम दिया गया। 1 अप्रैल , 1999 से इस विभाग का नाम " ग्रामीण विकास विभाग " किया गया। ग्रामीण विकास विभाग द्वारा क्रियान्वित अधिकांष योजनाओं का क्रियान्वयन जिला स्तर पर पंचायती राज संस्थाओं के माध्यम से किया जा रहा है।

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