यज्ञ क्या है ? यज्ञ का उद्देश्य क्या है ?
यज्ञ क्या है ? यज्ञ का उद्देश्य क्या है ? यज्ञ के आवश्यक तत्त्व क्या हैं ? देवपूजा, संगतिकरण और दान परस्पर कैसे आबद्ध हैं ? तत्त्व-त्रय के अभिनयार्थ अग्नि, समिधा और आज्य क्यों आवश्यक हैं ? कुण्ड में आधान की गई अग्नि किसका उपलक्षण है ? अग्न्याधान का क्या प्रयोजन है ? आहित अग्नि के लिए इध्म प्रथमागामी क्यों है ? इध्म और समिधा में क्या अन्तर है ? समिधा में प्रयुक्त सम् उपसर्ग का क्या महत्त्व है ? इत्यादि प्रश्नों का विवेचन हो गया ।
अब, इसके पश्चात् अग्नि को प्रबुद्ध कैसे रखा जाए ? चेचित कैसे किया जाए जिससे कि एक बार आहित-अग्नि-इध्म द्वारा इद्ध-अग्नि, घृत द्वारा समिद्ध-अग्नि और हवि द्वारा सुसमिद्ध-अग्नि हो जाए, जिससे समर्पणकर्त्ता जन स्वयं आकर्षित होते चले आएँ और अपनी आत्मा को इध्म बनाने में गौरव अनुभव करें ?
अग्नि को प्रबुद्ध करने के लिए, चेताए रखने के लिए, सुसमिद्ध बनाने के लिए जिस साधन की आवश्यकता होती है, उसका नाम घृत है, आज्य है । समिधा जहाँ अग्नि को इद्ध रखने के लिए प्रथम साधन है, वहाँ घृत अग्नि को निर्धूम रखने के लिए द्वितीय साधन है। समिधा अग्नि को दीप्त करती है, वह अग्नि की देह है, अग्नि की जिह्वा है, घृत वह
साधन है, जो समित्-देह में प्राणों का संचार करता है--उसकी साँस, उसकी जान-समित् जिह्वा का अद्भुत रस।
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