मनमौजी हूँ... लिंक पाएं Facebook Twitter Pinterest ईमेल दूसरे ऐप कवि हूँ ,मनमौजी हूँ ,मुसाफिर हूँ अनजान खलाओं का ,आँखों में मेरे है सपनो का मेला ,शामिल हूँ भीड़ में,हूँ फिर भी अकेला , चल सको तो चलो मेरे साथ, दो कदम तुम भी , सोख लेंगे कुछ दर्द, बाँट लेंगे,कुछ खुशियाँ हम भी । लिंक पाएं Facebook Twitter Pinterest ईमेल दूसरे ऐप टिप्पणियाँ बेनामी3 अक्तूबर 2010 को 8:25 pm बजेHELLOजवाब देंहटाएंउत्तरजवाब देंटिप्पणी जोड़ेंज़्यादा लोड करें... एक टिप्पणी भेजें
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